अंजन

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साँचा:स्रोतहीन अंजन नेत्रों की रोगों से रक्षा अथवा उन्हें सुंदर श्यामल करने के लिए चूर्ण द्रव्य, नारियों के सोलह सिंगारों में से एक। प्रोषितपतिका विरहणियों के लिए इसका उपयोग वर्जित है। मेघदूत में कालिदास ने विरहिणी यक्षी और अन्य प्रोषितपतिकाओं को अंजन से शून्य नेत्रवाली कहा है। अंजन को शलाका या सलाई से लगाते हैं। इसका उपयोग आज भी प्राचीन काल की ही भाँति भारत की नारियों में प्रचलित है। पंजाब, पाकिस्तान के कबीलाई इलाकों, अफ़गानिस्तान तथा बिलोचिस्तान में मर्द भी अंजन का प्रयोग करते हैं। प्राचीन वेदिका स्तंभों (रेलिंगों) पर बनी नारी मूर्तियाँ अनेक बार शलाका से नेत्र में अंजन लगाते हुए उभारी गई हैं।

साँचा:आधारसबसे सरल आंखें, गड्ढे की आंखें, आंख के धब्बे होते हैं जो कि प्रकाश के कोण को कम करने के लिए एक गड्ढे में स्थापित हो सकते हैं जो आंख के स्थान पर प्रवेश करता है और प्रभावित करता है, जिससे जीव को आने वाली रोशनी के कोण को कम करने की अनुमति मिलती है। [१] अधिक जटिल आंखों से, रेटिना फोटोसेन्सिटिव नाड़ीग्रन्थि कोशिकाएं रेटिनोहिपोथैलेमिक ट्रैक्ट के साथ सिग्नल को सर्केडियन समायोजन को प्रभावित करने के लिए और प्यूपिलरी लाइट रिफ्लेक्स को नियंत्रित करने के लिए प्रीकटेल क्षेत्र में भेजती हैं।