सामुद्रिक शास्त्र

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सामुद्रिक शास्त्र मुख, मुखमण्डल तथा सम्पूर्ण शरीर के अध्ययन की विद्या है। भारत में यह यह वैदिक काल से ही प्रचलित है। गरुड पुराण में सामुद्रिक शास्त्र का वर्णन है।

मानव-शरीर के विभिन्न अंगों की बनावट के आधार पर उसके गुण-कर्म-स्वाभावादि का निरूपण करने वाली विद्या आरंभ में लक्षण शास्त्र के नाम से प्रसिद्ध थी। हाथ की परीक्षा —- प्रातःकाल शौच-स्नानादि से निवृत्त होकर देवपूजनोपरांत अपने हाथ में श्रीफल (नारियल), ऋतुफल, मिष्ठान्न, पुष्प एवं दक्षिणा आदि लेकर हस्त परीक्षक की सेवा में उपस्थित होना चाहिए। सामान्यतः पुरुषों का दायाँ तथा स्त्रियों का बायाँ हाथ देखना चाहिए। अतः वर्तमान जीवन की जानकारियाँ दाएँ हाथ से तथा पूर्व-जन्मार्जित कर्म-फल विषयक ज्ञातव्य बाएँ हाथ से प्राप्त करना चाहिए। स्त्रियों के विषय में इससे विपरीत समझना चाहिए। —–हस्त-परीक्षा का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल का है। ग्रहण के समय, श्मशान में, मार्ग में चलते समय तथा भीड़-भाड़ में हाथ नहीं देखना चाहिए। हाथ दिखाने वाले के अतिरिक्त यदि कोई अन्य व्यक्ति भी उपस्थित हो तो उस समय हाथ नहीं देखना चाहिए, जल्दबाजी में हाथ देखना वर्जित है। —–अगर किसी रेखा के साथ-साथ कोई और रेखा चले तो उस रेखा को शक्ति मिलती है। अतः उस रेखा का विशेष प्रभाव समझना चाहिए। कमजोर, दुर्बल अथवा मुरझाई हुई रेखाएँ बाधाओं की सूचक होती हैं। —– अस्पष्ट और क्षीण रेखाएँ बाधाओं की पूर्व सूचना देती हैं। ऐसी रेखाएँ मन के अस्थिर होने तथा परेशानी का संकेत देती हैं। —– अगर कोई रेखा आखिरी सिरे पर जाकर कई भागों में बँट जाए तो उसका फल भी बदल जाता है। ऐसी रेखा को प्रतिकूल फलदायी समझा जाता है। —–टूटी हुई रेखाएँ अशुभ फल प्रदान करती हैं। —–अगर किसी रेखा में से कोई रेखा निकलकर ऊपर की ओर बढ़े तो उस रेखा के फल में वृद्धि होती है। —–वैज्ञानिक अध्ययन से यह पता चलता है कि मस्तिष्क की मूल शिराओं का हाथ के अंगूठे से सीधा संबंध है। स्पष्टतः अंगुष्ठ बुद्धि की पृष्ठ भूमि और प्रकृति को दर्शाने वाला सबसे महत्वपूर्ण अंग है। बाएं हाथ के अंगूठे से विरासत में मिली मानसिक वृति का आकलन किया जाता है और दायें हाथ के अंगूठे से स्वअर्जित बुद्धि-चातुर्य और निर्णय क्षमता का अंदाजा लगाना संभव है। अंगूठे और हथेली का मिश्रित फल व्यक्ति को अपनी प्रकृति के अनुसार ढाल पाने में सक्षम है। व्यक्ति के स्वभाव और बुद्धि की तीक्ष्णता को अंगुष्ठ के बाद अंगुलियों की बनावट और मस्तिष्क रेखा सबसे अधिक प्रभावित करती है। —-अमेरिकी विद्वान विलियम जार्ज वैन्हम के अनुसार व्यक्ति के हाव-भाव और पहनावे से उसके स्वभाव के बारे में आसानी से बताया जा सकता है। —अतीव बुद्धि संपन्न लोगों का अंगुष्ठ पतला और पर्याप्त लंबा होता है। यह पहली अंगुली (तर्जनी) से बहुत पृथक भी स्थित होता है। यह व्यक्ति के लचीले स्वभाव को व्यक्त करता है। इस प्रकार के लोग किसी भी माहौल में स्वयं को ढाल सकने में कामयाब हो सकते हैं। ये काफी सहनशील भी देखे जाते हैं। इन्हें न तो सफलता का ही नशा चढ़ता है और न ही विफलता की परिस्थितियों से ही विचलित होते हैं। इनकी सबसे अच्छी विशेषता या गुण इनका लक्ष्य के प्रति निरंतरता है। लेकिन —–यदि अंगुष्ठ का नख पर्व (नाखून वाला भाग) यदि बहुत अधिक पतला है तो व्यक्ति अंततः दिवालिया हो जाता है और यदि यह पर्व बहुत मोटा गद्दानुमा है तो ऐसा व्यक्ति दूसरों के अधीन रह कर कार्य करता है। यदि नख पर्व गोल हो और अंगुलियां छोटी और हथेली में शनि और मंगल का प्रभाव हो तो जातक स्वभाव से अपराधी हो सकता है। ——अंगुलियां कुल हथेली के चार में से तीन भाग के समक्ष होनी चाहिए। इससे कम होने से जातक कुएं का मेढक होता है। उसके विचारों में संकीर्णता और स्वभाव में अति तक की मितव्ययता होती है। सीमित बुद्धि संपन्न ये जातक भारी और स्थूल कार्यों को ही कर पाते हैं। बौद्धिक कार्य इनके लिए दूर की कौड़ी होती है। अक्सर इनको स्वार्थी भी देखा गया है। इस प्रकार की अंगुलियां यदि विरल भी हो तो आयु का नाश करती हैं। ——अंगुलियां के अग्र भाग नुकीले रहने से काल्पनिक पुलाव पकाने की आदत होती है। जिससे व्यक्ति जीवन की वास्तविकता से अनभिज्ञ रहते हुए एक असफल जीवन जीता है। ——-अंगुलियां लंबी होने से जातक बौद्धिक और सूक्ष्मतम कार्य बड़ी सुगमता से पूर्ण कर लेता है और स्थूल कार्य भी इसकी पहुंच से बाहर नहीं होते हैं। बहुत बार इस प्रकार के जातक नेतृत्व करते देखे जाते हैं। इस प्रकार की अंगुलियों के साथ हाथ यदि बड़ा और चमसाकार हो तो जातक अपनी क्षमता का लोहा समाज को मनवा लेता है। लंबी अंगुलियों के साथ यदि हथेली में शुक्र मुद्रिका भी हो तो जातक सर्वगुण संपन्न होते हुए भी भावुकतावश प्रगति के मार्ग में पिछड़ जाता है। शनि मुद्रिका होने से दुर्भाग्य साथ नहीं छोड़ता है। इस प्रकार के जातक अपनी योग्यता और क्षमता का पूर्ण दोहन नहीं कर पाते हैं। जिसके कारण इनको जीवन में सीमित उपलब्धियों से ही संतोष करना होता है। चंद्रमा का बहुत प्रभाव होने से जातक पर यथार्तता की अपेक्षा कल्पना हावि रहती है। ——-अंगुलियों के नाखून जब त्वचा में अंदर तक धंसे हों, साथ ही ये आकार में सामान्य से छोटे हों तो जातक बुद्धि कमजोर होती है। इसकी मनोवृत्ति सीमित और आचरण बचकाना होता है। ये जातक आजीविका हेतु इस प्रकार के कार्य करते पाए जाते हैं, जिनमें बौद्धिक / शारीरिक मेहनत न के बराबर होते होती है। ——-कनिष्ठा सामान्य से अधिक छोटी हो तो जातक मूर्ख होता है। कनिष्ठा के टेढी रहने से जातक अविश्वसनीय होता है। टेढ़ी कनिष्ठा को कुछ विद्वान चोरी करने की वृत्ति से भी जोड़ते हैं। लेकिन इसे तभी प्रभावी मानना चाहिए जब हथेली में मंगल विपरीत हो, क्योंकि ग्रहों में मंगल चोर है। ——अंगुलियों का बैंक बैलेंस से सीधा संबंध है। केवल अंगुलियों का निरक्षण कर लेने भर से ही इस तथ्य का अंदाजा लगाया जा सकता है कि व्यक्ति में धन संग्रह की प्रवृत्ति कहां तक है। तर्जनी (पहली अंगुली) और मध्यमा (बीच की अंगुली) यदि बिरल (मध्य में छिद्र) हों तो निश्चित रूप से जीवन के मध्य काल के बाद ही धन का संग्रह हो पाता है। यदि कनिष्ठा विरल हो तो वृद्धावस्था अर्थाभाव में व्यतीत होती है। यदि अंगुलियों के मूल पर्व गद्देदार और स्थूल हों तो जीवन में विलास का आधिक्य रहता है। सभी अंगुलियों के विरल होने से जीवन पर्यन्त धन की कमी रहती है। सीधी, चिकनी और गोल अंगुलियां धन को बढ़ा देती है। सूखी अंगुलियां धन का नाश करती हैं। ——-वे अंगुलियां जिनके जोड़ों की गांठें बहुत उभरी हुई हों, संवेदनशील और कंजूस प्रवृत्ति दर्शाती हैं। लेकिन ऐसी उंगलियों वाले जातक कड़ी मेहनत कर सकते हैं। यही इनकी सफलता का रहस्य होता है। —–अंगूठे और अंगुलियों के आकार-प्रकार के अलावा हाथ की बनावट से हमें काफी कुछ जानकारी प्राप्त होती है। ——समचौरस हथेली के स्वामी व्यवहारिक होते हैं। लेकिन ऐसे लोग स्वार्थी भी होंगे। साथ ही समय आने पर किसी को धोखा भी दे सकते हैं। इसके विपरीत लंबवत हथेली के ]स्वामी भावुक और कल्पनालोक में विचरण करने वाले लोग होंगे। आमतौर पर ये जीवन में स्वतंत्र रूप से सफल नहीं रहते हैं। तथापि ये नौकरी में ज्यादा सफल रहते हैं। ऐसे लोग यदि स्वयं का व्यवसाय स्थापित करें तो प्रायः लंबा नुकसान उठाते हैं। अतः ऐसे लोगों को हमेशा नौकरी को तरजीह देनी चाहिए। —–हथेली का पृष्ठभाग समतल या कुछ उभार लेते हुए होना चाहिए। ऐसी हथेली का जातक व्यवहारिक होता है। यदि हथेली का करपृष्ठ बहुत अधिक उभार लिए हुए हो तो प्रायः व्यक्ति कर्कश स्वभाव और झगड़ालू होता है। ——हथेली में जब गहरा गढ़ा हो तो प्रायः जातक अपनी बात पर कायम नहीं रह पाता है। ऐसे लोग जीवन मे अत्यंत संघर्ष के उपरांत ही कुछ हासिल कर पाते हैं। ——–हथेली का पृष्ठ भाग और कलाई हमेशा समतल होनी चाहिए। यदि दोनों में ज्यादा अंतर है तो यह जातक को समाज में स्थापित होने से रोकती है। ऐसे लोग अपने परिजनों से विरोध करते हैं। समाज में इनकी प्रतिष्ठा कम होती है। ——–जिन हाथों में शनि-मंगल का प्रभाव हो वे लोग कानूनी समस्याओं का सामना करते हैं। कुछ मामलों में ऐसे लोग अपराधी भी हो सकते हैं। ——–हथेली में राहु का प्रभाव होने पर जातक बुरी आदतों का शिकार होता है। वह धर्मभ्रष्ट भी हो सकता है। मदिरापान कर सकता है या अभक्षण का भी भक्षण कर सकता है।

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ऐसी हस्तरेखा वाले को होता हें भारी धन-लाभ—- प्रायः हर व्यक्ति यह चाहता है कि उसे अचानक भारी धन-लाभ हो, चाहे किसी भी प्रकार से हो। इस अचानक लाभ के लिए व्यक्ति अपनी जमापूँजी को भी लॉटरी, रेस, सट्टा आदि में लगा देते हैं। इस तरह अपनी परिश्रम से कमाई हुई दौलत को बर्बाद करना सर्वथा अनुचित है। यह भी जान लेना जरूरी है कि वास्तव में आपके भाग्य में आकस्मिक धन-लाभ प्राप्त होना है या नहीं। हस्तरेखा के अनुसार- जिनके दाहिने हाथ पर चंद्र के उभरे हुए भाग पर तारे का चिह्न है और जिनकी अंतःकरण रेखा शनि के ग्रह पर ठहरती है, ऐसे व्यक्तियों को आकस्मिक लाभ मिलता है। जिनके दाहिने हाथ की बुध से निकलने वाली रेखा चंद्र के पर्वत से जा मिलती है और जिनकी जीवन रेखा भी चंद्र पर्वत पर जाकर रुक जाती है, ऐसे व्यक्तियों को अचानक भारी लाभ होता है। जिनकी भाग्य रेखा चंद्र पर्वत से निकलकर प्रभावी शनि में संपूर्ण विलीन हो जाती है, ऐसे भाग्यवान व्यक्तियों को अल्पकालीन धन-लाभ होता है। जिनके दाहिने हाथ पर दोहरी अंत.करण रेखा है और गौण रेखा बुध तथा शनि के ग्रहों से जुड़ी हुई है, ऐसे व्यक्तियों को अचानक भारी लाभ होगा। इसके विपरीत जिनके हाथों की आयुष्य रेखा नेपच्युन ग्रह पर गई हों, चंद्र और नेपच्युन पर्वत एक-दूसरे में घुल-मिल गए हों, अंतःकरण रेखा गुरु पर्वत पर ठहर गई हो, जिनके शनि के उभरे हुए भाग पर फुली पड़ गई हो, ऐसे व्यक्तियों को रेस, लॉटरी इत्यादि में धन-लाभ कभी नहीं होगा, उनका पूरा जीवन कड़ा परिश्रम करने में ही गुजरता है। वे पैसे गँवाकर कंगाल बने रहते हैं। जन्मकुंडली के अनुसार-जिनकी कुंडली में सप्तम स्थान में वृष राशि का चंद्र हो और लाभ स्थान में कन्या राशि का शनि हो, ऐसे व्यक्ति की पत्नी को भारी आकस्मिक धन-लाभ होता है, जब उनकी आयु 37 से 43 वर्ष के मध्य हो। चंद्रमा और बुध धन स्थान में हो तो बहुत लाभ होता है। दशम स्थान में कर्क राशि का चंद्र और धन स्थान में शनि हो तो अचानक धन-लाभ होता है। धन स्थान में 5 या इससे अधिक ग्रह हों तो बड़ा धन-लाभ होता है। इसके विपरीत व्यय स्थान में बारहवें केतु हो, जन्मकुंडली में कालसर्प योग हो। चंद्र, बुध और शनि नीच स्थान में हों तो रेस, सट्टा, लॉटरी से कोई लाभ नहीं होता। व्यक्ति को तभी आकस्मिक लाभ होगा जब कुंडली में पंचम भाव, द्वितीय भाव तथा एकादश भाव व उनके स्वामी ग्रह और इन भावों में स्थिर ग्रह बलवान हों। जन्म कुंडली में पंचम भाव को संचित भाव कहते हैं। एकादश भाव से लाभ का विचार किया जाता है तथा द्वितीय भाव से धन-संपत्ति का निर्णय किया जाता है। वर्णित जन्मकुंडली में पंचम भाव में गुरु स्थित है, पंचमेश मंगल धन भाव में स्थित है। पंचम भाव पर पंचमेश मंगल की चतुर्थदृष्टि है, द्वितीय भाव में मंगल स्थित है। द्वितीयेश सूर्य केंद्र भाव में उच्च का है। एकादश भाव पर गुरु की दृष्टि है, एकादश भाव का अधिपत्य शुक्र भाग्य भवन में उच्च का है तथा उस पर गुरु व मंगल की उच्च दृष्टि है। ऐसे व्यक्ति की कुंडली में भारी मात्रा में लाभ होने का योग है।

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मानव शरीर में उँगलियों का महत्व—- दोनों हाथों को जोड़कर जो मुद्रा बनती है, उसे प्रणाम मुद्रा कहते हैं। जब दोनों हाथों की सभी उँगलियाँ- अंगुष्ठ से अंगुष्ठ, तर्जनी से तर्जनी, मध्यिका से मध्यिका, अनामिका से अनामिका एवं कनिष्का से कनिष्का मिलती है तो शरीर के, जो ब्रह्मांड का एक छोटा रूप माना जाता है, उत्तरी ध्रुव (बायाँ हाथ) एवं दक्षिण ध्रुव (दायाँ हाथ) के मिलन से एक चक्र पूर्ण होता है, क्योंकि बाएँ हाथ में स्थित सभी बारह राशियों का संपर्क दाहिने हाथ में स्थित सभी बारह राशियों से परस्पर होता है। अँगूठा —– सबसे पहली उँगली को अँगूठा या अंगुष्ठ कहते हैं। इसका स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है। यह अन्य चारों उँगलियों का मुख्य सहायक है। इसकी सहायता के बगैर अन्य चारों उँगलियाँ कार्य संपन्न नहीं कर सकतीं। संभव है इसी के कारण गुरु द्रोण ने एकलव्य से उसका अँगूठा ही गुरुदक्षिणा में माँग लिया था। बंद मुट्ठी से अँगूठे को बाहर निकालकर दिखाने को अँगूठा दिखाना या ठेंगा दिखाना कहा जाता है, जिसका तात्पर्य हमारे यहाँ किसी कार्य को करने से मना करना समझा जाता है। परंतु पश्चिमी सभ्यता में ठीक उलटा यानी थम्स आपको कार्य करने की स्वीकृति समझा जाता है। यूँ तो दुनिया में कई करोड़ मनुष्य हैं, परंतु जिस प्रकार सबकी मुखाकृति भिन्न होती है, उसी प्रकार सभी के अँगूठों के निशान भी भिन्न होते हैं। इसी कारण अपराध जगत में थम्ब इम्प्रेशन का महत्व काफी होता है। तर्जनी —- यह सबसे ऊर्जावान उँगली होती है। हमारे यहाँ विश्वास किया जाता है कि जो बच्चा जितने अधिक दिनों तक उँगली पकड़कर चलता है, वह बड़ों से उतनी ही ऊर्जा प्राप्त करता है। उसका विकास भी उतनी ही तीव्र गति से होता है। तर्जनी की ऊर्जा इतनी अधिक होती है कि कुछ फल मात्र इसके संकेत से ही मर जाते हैं। देखिए तुलसीदासजी लिखते हैं- ‘इहां कम्हड़ बतिया कोउ नाहीं, जो तर्जनी देखि मर जाहीं।’ ऐसी मान्यता भारत के अलावा अन्य कई देशों में भी है कि नन्हे फल तर्जनी के संकेत से मर जाते हैं। सबसे पहली उँगली को अँगूठा या अंगुष्ठ कहते हैं। इसका स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है। यह अन्य चारों उँगलियों का मुख्य सहायक है। इसकी सहायता के बगैर अन्य चारों उँगलियाँ कार्य संपन्न नहीं कर सकतीं। इसलिए वहाँ किसी को तर्जनी दिखाना अच्छा नहीं माना जाता। तर्जनी का प्रयोग लिखने के लिए अथवा मुख्य कार्य के लिए होता है, जिसके सहायक मध्यिका एवं अँगूठा होते हैं। इसकी ऊर्जा का अंदाज मात्र इस बात से लगाया जा सकता है कि किसी भी प्रकार का जप करते समय माला के किसी भी मनके से इसका स्पर्श पूर्णतया वर्जित है। मध्यिका — यह हाथ की सबसे लंबी उँगली तो है परंतु इसका मुख्य कार्य तर्जनी की सहायता करना है। संभवतः इसी कारण जाप में मनकों से इसका भी स्पर्श निषिद्ध माना जाता है। अनामिका—- यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण उँगली है। इसका सीधा संबंध हृदय से होता है। अतः सभी शुभ कार्यों में इसकी मान्यता सबसे अधिक है। इसी कारण जप की माला का संचरण इसके एवं अँगूठे की सहायता से किया जाता है। धार्मिक कृत्यों हेतु कुशा भी इसी उँगली में धारण की जाती है। ग्रहों और नक्षत्रों से संबंधित लगभग सभी रत्न अँगूठी के माध्यम से इसी में धारण किए जाते हैं, जिसके पीछे कारण यह है कि वे रत्न सूर्य से वांछित ऊर्जा प्राप्त कर जातक (धारण करने वाले) को प्रदान करते हैं, जिससे उसके भीतर वांछित ऊर्जा की कमी दूर होती है। वे लोग जो मंत्रों का जप उँगलियों के माध्यम से करते हैं, अपनी गणना इसी उँगली से प्रारंभ करते कनिष्का—– यह हाथ की सबसे छोटी उँगली है, जो हर प्रकार से अनामिका की सहायता करती है। इसे अनामिका की सहायक कहा जाता है। अन्य —- किसी-किसी व्यक्ति के हाथ में छः उँगलियाँ भी होती हैं। लोगों का विश्वास है कि जिन पुरुषों के दाहिने हाथ में एवं जिन स्त्रियों के बाएँ हाथ में छः उँगलियाँ होती हैं, वे बड़े भाग्यशाली होते हैं। ज्योतिष विद्या के अनुसार बारहों राशियों का स्थान प्रत्येक उँगली के तीन पोरों (गाँठों) में इस प्रकार होता है- कनिष्का – मेष, वृष, मिथुन अनामिका – कर्क, सिंह, कन्या मध्यिका – तुला, वृश्चिक, धनु तर्जनी – मकर, कुंभ, मीन। शरीर का निर्माण पाँच तत्वों से हुआ है- अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल। इसका भी निवास क्रमशः अँगूठा, तर्जनी, मध्यिका, अनामिका एवं कनिष्ठा में माना जाता है। दो या दो से अधिक उँगलियों के मेल से जो यौगिक क्रियाएँ संपन्न की जाती हैं, उन्हें योग मुद्रा कहा जाता है, जो इस प्रकार हैं- 1. वायु मुद्रा- यह मुद्रा तर्जनी को अँगूठे की जड़ में स्पर्श कराने से बनती है। 2. शून्य मुद्रा- यह मुद्रा बीच की उँगली मध्यिका को अँगूठे की जड़ में स्पर्श कराने से बनती है। 3. पृथ्वी मुद्रा- यह मुद्रा अनामिका को अँगूठे की जड़ में स्पर्श कराने से बनती है। 4. प्राण मुद्रा- यह मुद्रा अँगूठे से अनामिका एवं कनिष्का दोनों के स्पर्श से बनती है। 5. ज्ञान मुद्रा- यह मुद्रा अँगूठे को तर्जनी से स्पर्श कराने पर बनती है। 6. वरुण मुद्रा- यह मुद्रा दोनों हाथों की उँगलियों को आपस में फँसाकर बाएँ अँगूठे को कनिष्का का स्पर्श कराने से बनती है। सभी मुद्राओं के लाभ अलग-अलग हैं। दोनों हाथों को जोड़कर जो मुद्रा बनती है, उसे प्रणाम मुद्रा कहते हैं। जब ये दोनों लिए हुए हाथ मस्तिष्क तक पहुँचते हैं तो प्रणाम मुद्रा बनती है। प्रणाम मुद्रा से मन शांत एवं चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न होती है। अतः आइए, हेलो, हाय, टाटा, बाय को छोड़कर प्रणाम मुद्रा अपनाएँ और चित्त को प्रसन्न रखें।

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हस्तरेखा /सामुद्रिक शास्त्र / लक्षण शास्त्र से जाने राजयोग —— राजयोग:- जिस स्त्री या पुरुष की नाभि गहरी हो नाक या अग्र भाग यानी आगे का हिस्सा सीधा हो सीना लाल रंग का हो पैर के तलुये कोमल हों ऐसा व्यक्ति राजयोग के योग से आगे बढता है.और उच्च पदाशीन होता है. राजयोग धनवान योग:- जिसके हाथ में चक्र फ़ूलों की माला धनुष रथ आसन इनमे से कोई चिन्ह हो तो उसके यहाँ लक्ष्मी जी निवास किया करती है. उच्चपद योग:- जिस स्त्री या पुरुष के हाथ में सूर्य रेखा मस्तक रेखा से मिलती हो और मस्तक रेखा से गहरी स्पष्ट होकर गुरु क्षेत्र में चतुष्कोण में बदल जाये तो ऐसा व्यक्ति उच्चपदासीन होता है. पीसीएस या आईएस योग:- जिसके हाथ में सूर्य और गुरु पर्वत उच्च हों और शनि पर्वत पर त्रिशूल का चिन्ह हो चन्द्र रेखा का भाग्य रेखा से सम्बन्ध हो और भाग्य रेखा हथेली के मध्य से आरंभ होकर एक शाखा गुरु पर्वत और दूसरी रेखा सूर्य पर्वत पर जाये तो निश्चय ही यह योग उस जातक के लिये होते है. विदेश यात्रा योग :- जिस स्त्री या पुरुष के हाथ में जीवन रेखा से निकल कर एक शाखा भाग्य रेखा को काटती हुयी चन्द्र क्षेत्र को रेखा जाये तो वह विदेश यात्रा को सूचित करती है. भू स्वामी योग:- जिसके हाथ में एक खडी रेखा सूर्य क्षेत्र से चलकर चन्द्र रेखा को स्पर्श करे,मस्तक रेखा से एक शाखा चन्द्र रेखा से मिलकर डमरू का निशान बनाये तो वह व्यक्ति आदर्श नागरिक और भूस्वामी होने का अधिकारी है. पायलट योग:- जिसके हाथ में चन्द्र रेखा जीवन रेखा तक हो बुध और गुरु का पर्वत ऊंचा हो ह्रदय रेखा को किसी प्रकार का अवरोध नही हो तो वह व्यक्ति पायलट की श्रेणी में आता है. ड्राइवर योग:- जिसके हाथ की उंगलिया के नाखून लम्बे हों हथेली वर्गाकार हो चन्द्र पर्वत ऊंचा हो सूर्य रेखा ह्रदय रेखा को स्पर्श करे मस्तक रेखा मंगल पर मिले या त्रिकोण बनाये तो ऐसा व्यक्ति छोटी और बडी गाडियों का ड्राइवर होता है. वकील योग:- जिसके हाथ में शनि और गुरु रेखा पूर्ण चमकृत हो और विकसित हो या मणिबन्ध क्षेत्र में गुरु वलय तक रेखा पहुंचती हो तो ऐसा व्यक्ति कानून का जानकार जज वकील की हैसियत का होता है. सौभाग्यशाली योग:- जिस पुरुष एक दाहिने हाथ में सात ग्रहों के पर्वतों में से दो पर्वत बलवान हों और इनसे सम्बन्धित रेखा स्पष्ट हो तो व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है. जुआरी सट्टेबाज योग:- जिस व्यक्ति की अनामिका उंगली मध्यमा के बराबर की हो तो ऐसा व्यक्ति सट्टेबाज और जुआरी होता है. चोरी का योग:- जिस पुरुष या स्त्री के हाथ में बुध पर्वत विकसित हो और उस पर जाल बिछा हो तो उसके घर पर बार बार चोरियां हुआ करती है. पुलिस सेवा का योग:- जिसके हाथ में मंगल पर्वत से सूर्य पर्वत और शनि की उंगली से बीचों बीच कोई रेखा स्पर्श करे तो व्यक्ति सेना या पुलिस महकमें मे नौकरी करता है. भाग्यहीन का योग:- जिस जातक के हाथ में हथेली के बीच उथली हुयी आयत का चिन्ह हो तो इस प्रकार का व्यक्ति हमेशा चिडचिडा और लापरवाह होता है. फ़लित शास्त्री योग:- जिस व्यक्ति के गुरु -पर्वत के नीचे मुद्रिका या शनि शुक्र बुध पर्वत उन्नत हों वह ज्योतिषी होता है. नर्स सेविका योग:- जिस स्त्री की कलाई गोल हाथ पतले और लम्बे हों बुध पर्वत पर खडी रेखायें हों व शुक्र पर्वत उच्च का हो तो जातिका नर्स के काम में चतुर होती है. नाडी परखने वाला:- जिस व्यक्ति का चन्द्र पर्वत उच्च का हो वह व्यक्ति नाडी का जानकार होता है. दगाबाज या स्वार्थी योग:- जिसके नाखून छोटे हों हथेली सफ़ेद रंग की हो मस्तक रेखा ह्रदय रेखा में मिलती हो तो ऐसा व्यक्ति दगाबाज होता है,मोटा हाथ और बुध की उंगली किसी भी तरफ़ झुकी होने से भी यह योग मिलता है,बुध की उंगली सबसे छोटी उंगली को बोला जाता है. विधुर या विधवा योग:- यदि विवाह रेखा आगे चलकर ह्रदय रेखा से मिले या भाग्य रेखा टूटी हो अथवा रेखा पर काला धब्बा हो तो ऐसा जातक विधवा या विधुर होता है. निर्धन व दुखी योग:- यदि किसी जातक की जीवन रेखा पर जाल बिछा हो तो ऐसा व्यक्ति निर्धन और दुखी होता है. माता पिता का अभाव योग:- जिस व्यक्ति के हाथ में मणि बन्ध के बाद ही त्रिकोण द्वीप चिन्ह हो तो जातक बाल्यावस्था से माता पिता से दूर या हीन होता है. जिस जातक की हथेली में तर्जनी और अंगूठा के बीच से मंगल स्थान से जीवन रेखा की तरफ़ छोटी छोटी रेखायें आ रही हों और जीवन रेखा से मिल रही हो तो जातक को बार बार शरीर के कष्ट मिलते रहते है,लेकिन जीवन रेखा के साथ साथ कोई सहायक रेखा चल रही हो तो जातक का भाग्य और इष्ट उन कष्टों से दूर करता रहता है. जीवन रेखा के गहरे होने से व्यक्ति निर्धन होता है,गहरी होने के साथ लाल रंग की हो तो क्रोधी होता है काले रंग की हो तो कई रहस्य छुपाकर रखता है,और टेडी मेढी हो तो जातक कभी कुछ कभी कुछ करने वाला होता है.

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जानिए हस्तरेखा में शनि रेखा का कार्य —– आकाश में भ्रमण कर रहे शनि ग्रह की रेखा भी विशिष्ट है। यह बल्यधारी ग्रह अपने नीलाभवर्ण और चतुर्दिक मुद्रिका-कार आभायुक्त बलय के कारण बहुत ही शोभन प्रतीत होता है। यह ग्रह अपनी अशुभ स्थिति में मनुष्य को ढाई वर्ष, साढे सात वर्ष, अथवा उन्नीस वर्षों तक अत्यधिक पीडा देता है परंतु शुभ स्थिति में यह ग्रह उतना ही वैभवदाता, रक्षाकारी और संपन्नतावर्धक रूप धारण कर लेता हैं, जन्मकुंडली की भांति मानव हथेलियों पर भी शनि ग्रह की स्थिति होती है। शनि-पर्वत की स्थिति, आकार उभार और समीपवर्ती पर्वतों की संगति के भेद से शुभाशुभ एवं अशुभ दोनों प्रकार के फल का अनुमान लगाया जा सकता है।

आकाश में भम्रमण कर रहे शनि ग्रह की रेखा भी विशिष्ट है। यह बल्यधारी ग्रह अपने नीलाभवर्ण और चतुर्दिक मुद्रिका-कार आभायुक्त बलय के कारण बहुत ही शोभन प्रतीत होता है। यह ग्रह अपनी अशुभ स्थिति में मनुष्य को ढाई वर्ष, साढे सात वर्ष, अथवा उन्नीस वर्षों तक अत्यधिक पीडा देता है परंतु शुभ स्थिति में यह ग्रह उतना ही वैभवदाता, रक्षाकारी और संपन्नतावर्धक रूप धारण कर लेता हैं, जन्मकुंडली की भांति मानव हथेलियों पर भी शनि ग्रह की स्थिति होती है। शनि-पर्वत की स्थिति, आकार उभार और समीपवर्ती पर्वतों की संगति के भेद से शुभाशुभ एवं अशुभ दोनों प्रकार के फल का अनुमान लगाया जा सकता है।

हस्तरेखा में ‘शनि रेखा’ का प्रभाव-दुष्प्रभाव—— मध्यमा अंगुली के नीचे शनि पर्वत का स्थान है। यह पर्वत बहुत भाग्यशाली मनुष्यों के हाथों में ही विकसित अवस्था में देखा गया है। शनि की शक्ति का अनुमान मध्यमा की लम्बाई और गठन में देखकर ही लगाया जा सकता है, यदि वह लम्बीं और सीधी है तथा गुरु और शुईद्भ की अंगुलियां उसकी ओर झुक रही हैं तो मनुष्य के स्वभाव और चरित्र में शनिग्रहों के गुणों की प्रधानता होगी। ये गुण हैं-स्वाधीनता, बुद्धिमता, अध्ययनशीलता, गंभीरता, सहनशीलता, विनम्रता और अनुसंधान तथा इसके साथ अंतर्मुखी, अकेलापन। शनि के दुर्गुणों की सूची भी छोटी नहीं है, विषाद नैराश्य, अज्ञान, ईर्ष्या, अंधविश्वास आदि इसमें सम्मिलित हैं। अतः शनि ग्रह से प्रभावित मनुष्य के शारीरिक गठन को बहुत आसानी से पहचाना जा सकता है। ऐसे मनुष्य कद में असामान्य रूप में लम्बे होते हैं, उनका शरीर सुसंगठित लेकिन सिर पर बाल कम होते हैं। लम्बे चेहरे पर अविश्वास और संदेह से भरी उनकी गहरी और छोटी आंखें हमेशा उदास रहती हैं। यद्यपि उत्तोजना, क्रोध और घृणा को वह छिपा नहीं पाते। इस पर्वत के अभाव होने से मनुष्य अपने जीवन में अधिक सफलता या सम्मान नहीं प्राप्त कर पाता। मध्यमा अंगुली भाग्य की देवी है। भाग्यरेखा की समाप्ति प्रायः इसी अंगुली की मूल में होती है। पूर्ण विकसित शनि पर्वत वाला मनुष्य प्रबल भाग्यवान होता है। ऐसे मनुष्य जीवन में अपने प्रयत्नों से बहुत अधिक उन्नति प्राप्त करते हैं। शुभ शनि पर्वत प्रधान मनुष्य, इंजीनियर, वैज्ञानिक, जादूगर, साहित्यकार, ज्योतिषी, कृषक अथवा रसायन शास्त्री होते हैं। शुभ शनि पर्वत वाले स्त्री-पुरुष प्रायः अपने माता-पिता के एकलौता संतान होते हैं तथा उनके जीवन में प्रेम का सर्वोपरि महत्व होता है। बूढापे तक प्रेम में उनकी रुचि बनी रहती है, किंतु इससे अधिक आनंद उन्हें प्रेम का नाटक रचने में आता है। उनका यह नाटक छोटी आयु से ही प्रारंभ हो जाता है। वे स्वभाव से संतोषी और कंजूस होते हैं। कला क्षेत्रों में इनकी रुचि संगीत में विशेष होती है। यदि वह लेखक हैं तो धार्मिक रहस्यवाद उनके लेखन का विषय होता है। अविकसित शनि पर्वत होने पर मनुष्य एकांत प्रिय अपने कार्यों अथवा लक्ष्य में इतना तनमय हो जाते हैं कि घर-गृहस्थी की चिंता नहीं करते ऐसा मनुष्य चिड-चिडे और शंकालु स्वभाव के हो जाते हैं, तथा उनके शरीर में रक्त वितरण कमजोर होता है। उनके हाथ-पैर ठंडे होते हैं, और उनके दांत काफी कमजोर हुआ करते हैं। दुघर्टनाओं में अधिकतर उनके पैरों और नीचे के अंगों में चोट लगती है। वे अधिकतर निर्बल स्वास्थ्य के होते हैं। यदि हृदय रेखा भी जंजीरा कार हो तो मनुष्य की वाहन दुर्घटना में मृत्यु भी हो जाती है। शनि के क्षेत्र पर भाग्य रेखा कही जाने वाली शनि रेखा समाप्त होती है। इस पर शनिवलय भी पायी जाती है और शुक्रवलय इस पर्वत को घेरती हुई निकलती है। इसके अतिरिक्त हृदय रेखा इसकी निचली सीमा को छूती हैं। इन महत्वपूर्ण रेखाओं के अतिरिक्त इस पर्वत पर एक रेखा जहां सौभाग्य सूचक है। यदि रेखायें गुरु की पर्वत की ओर जा रही हों तो मनुष्य को सार्वजनिक मान-सम्मान प्राप्त होता है। इस पर्वत पर बिन्दु जहां दुर्घटना सूचक चिन्ह है वही क्रांस मनुष्य को संतति उत्पादन की क्षमता को विहीन करता है। नक्षत्र की उपस्थिति उसे हत्या या आत्महत्या की ओर प्रेरित कर सकती है। वृत का होना इस पर्वत पर शुभ होता है और वर्ग का चिन्ह होना अत्यधिक शुभ लक्षण है। ये घटनाओं और शत्रुओं से बचाव के लिए सुरक्षा सूचक है, जबकि जाल होना अत्यधिक दुर्भाग्य का लक्षण है। यदि शनि पर्वत अत्यधिक विकसित होता है तो मनुष्य २२ या ४५ वर्षों की उम्रों में निश्चित अत्महत्या कर लेता है। डाकू, ठग, अपराधी मनुष्यों के हाथों में यह पर्वत बहुत विकसित पाया जाता है जो साधारणतः पीलापन लिये होता है। उनकी हथेलियां तथा चमडी भी पीली होती है और स्वभाव म चिडचिडापन झलकता रहता हैं। यह पर्वत अनुकूल स्थिति में सुरक्षा, संपत्ति, प्रभाव, बल पद-प्रतिष्ठा और व्यवसाय प्रदान करता है, परंतु विपरीत गति होने पर इन समस्त सुख साधनों को नष्ट करके घोर संत्रास्तदायक रूप धारण कर लेता है। यदि इस पर्वत पर त्रिकोण जैसी आकृति हो तो मनुष्य गुप्तविधाओं में रुचि, विज्ञान, अनुसंधान, ज्योतिष, तंत्र-मंत्र सम्मोहन आदि में गहन रुचि रखता है और इस विषय का ज्ञाता होता है। इस पर्वत पर मंदिर का चिन्ह भी हो ते मनुष्य प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति के रूप में प्रकट होते हैं और यह चिन्ह राजयोग कारक माना जाता है। यह चिन्ह जिस किसी की हथेलियों के पर्वत पर उत्पन्न होते हैं, वह किसी भी उम्रों में ही वह मनुष्य लाखों-करोडों के स्वामी होते हैं। यदि इस पर्वत पर त्रिशूल जैसी आकृतियां हो तो वह मनुष्य एका-एक सन्यासी बन जाते हैं। यह वैराग्य सूचक चिन्ह है। इसके अलावा शनि का प्रभाव कभी शुरुआत काल में भाग्यवान बनाता है तो कभी जब शनि का प्रभाव समाप्त होता है तब। शनि की दशा शांति करने हित शनिवार को पीपल के नीचे दीपक जलाना चाहिए व हनुमान जी की पूजा-उपासना करना चाहिए।

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हस्तरेखा खोलेगी प्रेम संबंधों के राज—– किसी भी स्त्री या पुरुष के प्रेम के बारे में पता लगाने के लिए उस जातक के मुख्य रूप से शुक्र पर्वत, हृदय रेखा, विवाह रेखा को विशेष रूप से देखा जाता है। इन्हें देखकर किसी भी व्यक्ति या स्त्री का चरित्र या स्वभाव जाना जा सकता है। शुक्र क्षेत्र की स्थिति अँगूठे के निचले भाग में होती है। जिन व्यक्तियों के हाथ में शुक्र पर्वत अधिक उठा हुआ होता है। उन व्यक्तियों का स्वभाव विपरीत सेक्स के प्रति तीव्र आकर्षण रखने वाला तथा वासनात्मक प्रेम की ओर झुकाव वाला होता है। यदि किसी स्त्री या पुरुष के हाथ में पहला पोरू बहुत छोटा हो और मस्तिष्क रेखा न हो तो वह जातक बहुत वासनात्मक होता है। वह विपरीत सेक्स के देखते ही अपने मन पर काबू नहीं रख पाता है।

अच्छे शुक्र क्षेत्र वाले व्यक्ति के अँगूठे का पहला पोरू बलिष्ठ हो और मस्तक रेखा लम्बी हो तो ऐसा व्यक्ति संयमी होता है। यदि किसी स्त्री के हाथ में शुक्र का क्षेत्र अधिक उन्नत हो तथा मस्तक रेखा कमजोर और छोटी हो तथा अँगूठे का पहला पर्व छोटा, पतला और कमजोर हो, हृदय रेखा पर द्वीप के चिह्न हों तथा सूर्य और बृहस्पति का क्षेत्र दबा हुआ हो तो वह शीघ्र ही व्याकियारीणी हो जाती है।

यदि किसी पुरुष के दाएँ हाथ में हृदय रेखा गुरू पर्वत तक सीधी जा रही है तथा शुक्र पर्वत अच्छा उठा हुआ है तो वह पुरुष अच्छा व उदार प्रेमी साबित होता है। परन्तु यदि यही दशा स्त्री के हाथ में होती है तथा उसकी तर्जनी अँगुली अनामिका से बड़ी होती है तो वह प्रेम के मामले में वफादार नहीं होती है।

यदि हथेली में विवाह रेखा एवं कनिष्ठा अँगुली के मध्य में दो-तीन स्पष्ट रेखाएँ हो तो उस स्त्री या पुरुष के उतने ही प्रेम संबंध होते हैं।

यदि किसी पुरुष की केवल एक ही रेखा हो और वह स्पष्ट तथा अन्त तक गहरी हो तो ऐसा जातक एक पत्निव्रता होता है और वह अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम भी करता है। जैसा कि बताया गया है कि विवाह रेखा अपने उद्गम स्थान पर गहरी तथा चौड़ी हो, परन्तु आगे चलकर पतली हो गई हो तो यह समझना चाहिए कि जातक या जातिका प्रारम्भ में अपनी पत्नि या पति से अधिक प्रेम करती है, परन्तु बाद में चल कर उस प्रेम में कमी आ गई है।

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लव अफेयर/प्रेम योग जानिए हस्तरेखा से— जीवन में प्रेम को जो स्थान प्राप्त है उसे हस्त रेखा विज्ञान भी सम्मान देता है। युगों से कितने प्रेमी आये और चले गये मगर प्रेम जिन्दा है और प्रेमी प्रेम के गीत गुनगुनाते जा रहे हैं। प्रेम का यह भी शाश्वत सच है कि “यह किसी किसी को पूरी तरह अपनाता है, अक्सर तो यह एक लौ दिखाकर सब कुछ जला देता है”।

आपने देखा होगा कि प्रेमी एक दूसरे की खातिर अपना सब कुछ लूटा देने को तैयार रहते हैं परंतु वक्त कुछ ऐसा खेल खेल जाता है कि प्रेमियों को एक दूसरे से जुदा होकर विरह की आग में जलने के लिए मजबूर होना पड़ता है। सामुद्रिक ज्योतिष के विद्वान कहते हैं कि हमारी हथेली में कुछ ऐसी रेखाएं हैं जो किसी को महबूब से मिलाती है तो fकसी को जीवन भर का दर्द दे जाती है हस्त रेखा विज्ञान के जानकार कहते हैं। अगर हथेली में हृदय रेखा को कोई अन्य रेखा काटती हो तो प्रेमियों का मिलना मुश्किल होता है । हृदय रेखा लहरदार या जंजीर के समान दिखाई देती हो तब भी प्रेम में जुदाई का ग़म उठाना पड़ता है।

हस्तरेखीय ज्योतिष के अनुसार अगर शुक्र पर्वत अधिक उठा हुआ हो, उस पर तिल का निशान हो या द्वीप हो तो प्रेमियो के बीच में परिवार की मान्यताएं और अन्य कारण बाधक बनते हैं जिससे प्रेमियो के मिलन में बाधा आती है । अगर आपकी हथेली में हृदय रेखा पर द्वीप का निशान हो, जीवन रेखा को कई मोटी मोटी रेखा काट रही हो अथवा चन्द्र पर्वत अत्यधिक विकसित हो तो आपकी शादी उससे नहीं हो पाती है जिनके साथ आप जीवन बिताना चाहते हैं यानी यह रेखा इस बात संकेत देती है कि आपको मनपसंद जीवन साथी नहीं मिलने वाला है।

हथेली दिखने में काली है और सख्त भी तो प्रेमी प्रेमिका में प्रेम पूर्ण सम्बन्ध नहीं रहता क्योंकि उनके विचारों में सामंजस्य नहीं रहता फलत: प्रेमी प्रमिका स्वयं ही एक दूसरे से सम्बन्ध तोड़ सकते हैं। गुरू की उंगली छोटी हो एवं मस्तिष्क रेखा का अंत चन्द्र पर्वत पर हो अथवा भाग्य रेखा एवं हृदय रेखा मोटी है तो परिवार के लोगों द्वारा प्रेमी प्रेमिका के बीच ग़लत फ़हमी पैदा होने से प्रेम के नाजुक सम्बन्ध में बिखराव आ जाता है।

अगर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि प्रेम की डोर टूटने वाली है तो देखिये कहीं आपकी हथेली में मंगल पर्वत और बुध के स्थान पर रेखाओं का जाल तो नहीं है अथवा भाग्य रेखा टूटी हुई या मोटी पतली तो नहीं है। अगर रेखाएं इन स्थितियों में हैं तो प्रेम के पंक्षी एक घोंसले में निवास नहीं करते यानी दोनो को बिछड़ना पड़ता है।

हस्त रेखीय ज्योतिष के अनुसार अगर आपके बीच बात बात में तू-तू मैं -मैं होती है और स्थिति यहां तक पहुच गयी है कि आप एक दूसरे से अलग होना चाहते हैं तो इसका कारण यह हो सकता है कि आपकी हथेली में मस्तिष्क रेखा चन्द्र पर्वत की ओर हो अथवा भाग्य रेखा व हृदय रेखा सामान्य से अधिक मोटी हो। इसके अलावा इस स्थिति का कारण यह भी हो सकता है कि भाग्य रेखा कहीं मोटी कहीं पतली हो या बृहस्पति की उंगली सामान्य से छोटी हो।

हस्त रेखा ज्योतिष में जब हथेली में ऐसी रेखा देखी जाती है तो प्यार के रिश्तों में बिखराव का अनुमान लगाया जाता है। लेकिन यह जरूरी नहीं कि प्रेमियो को रेखाओं के कारण जुदाई का ग़म उठाना ही पड़े क्योंकि अगर मर्ज है तो इसका ईलाज भी मौजूद है। आप आपके रिश्तों में दूरियां बढ़ती जा रही हैं अथवा आपका प्रेमी आपको छोड़कर जा रहा है तो किसी अच्छे ज्योतिषाचार्य से सम्पर्क कीजिए। आप अपने प्रेम रूपी पौधे को हरा भरा रखने के लिए सच्चे मन से मां पार्वती और भगवान शंकर की सुबह शाम पूजा करें व उन्हें दीप दान दें। इनके आशीर्वाद से सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती है और जैसे शिव पार्वती के बीच प्रेम है वैसे ही आपका प्रेम गहरा होता है।

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हस्तरेखा से जानिए रोग का कारण एवं स्थिति—- समस्त रोगों का मूल पेट है। जब तक पेट नियंत्रण में रहता है, स्वास्थ्य ठीक रहता है। ज्योतिषीय दृष्टि से हस्तरेखाओं के माध्यम से भी पेटजनित रोग और पेट की शिकायतों के बारे में जाना जा सकता है। हथेली पर हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा और नाखूनों के अध्ययन के साथ ही मंगल और राहू किस स्थिति में हैं, यह देखना बहुत जरूरी है।

जिन व्यक्तियों का मंगल अच्छा नहीं होता है, उनमें क्रोध और आवेश की अधिकता रहती है। ऐसे व्यक्ति छोटी-छोटी बातों पर भी उबल पड़ते हैं। अन्य व्यक्तियों द्वारा समझाने का प्रयास भी ऐसे व्यक्तियों के क्रोध के आगे बेकार हो जाता है। क्रोध और आवेश के कारण ऐसे लोगों का खून एकदम गर्म हो जाता है। लहू की गति (रक्तचाप) के अनुसार क्रोध का प्रभाव भी घटता-बढ़ता रहता है। राहू के कारण जातक अपने आर्थिक वादे पूर्ण नहीं कर पाता है। इस करण भी वह तनाव और मानसिक संत्रास का शिकार हो जाता है।

हथेली पर हृदय रेखा टूट रही हो या फिर चेननुमा हो, नाखूनों पर खड़ी रेखाएँ बन गई हों तो ऐसे व्यक्ति को हृदय संबंधी शिकायतें, रक्त शोधन में अथवा रक्त संचार में व्यवधान पैदा होता है। यदि जातक का चंद्र कमजोर हो तो उसे शीतकारी पदार्थ जैसे दही, मट्ठा, छाछ, मिठाई और शीतल पेयों से दूर रहना चाहिए। इसी तरह मंगल अच्छा न हो तो मिर्च-मसाले वाली खुराक नहीं लेनी चाहिए। तली हुई चीजें जैसे सेंव, चिवड़ा, पापड़, भजिए, पराठे इत्यादि से भी परहेज रखना चाहिए। ऐसे जातक को चाहिए कि वह सुबह-शाम दूध पीएँ, देर रात्रि तक जागरण न करें और सुबह-शाम के भोजन का समय निर्धारित कर ले। सुबह-शाम केले का सेवन भी लाभप्रद होता है। पेट की खराबी से शरीर में गर्मी बढ़ जाती है और फिर इसी वजह से रक्तविकार पैदा होते हैं, जो आगे चलकर कैंसर का रूप तक अख्तियार कर सकते हैं। यह मत विश्व प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री डॉ. आउंट लुईस का है। जिस व्यक्ति के हाथ का आकार व्यावहारिक हो और साथ ही व्यावहारिक चिह्नों वाला हो तो ऐसा जातक अपने जीवन में काफी नियमित रहता है। ऐसा जातक वृद्धावस्था में भी स्वस्थ रहता है। इसी तरह विशिष्ट बनावट के हाथ या कोणीय आकार के हाथ, जिसमें चंद्र और मंगल पर शुक्र का अधिपत्य हो तो ऐसे लोग स्वादिष्ट भोजन के शौकीन होते हैं। शुक्र प्रधान होने के कारण भोजन का समय नियमित नहीं रहता है। ऐसे में उदर विकार स्वाभाविक ही है। इस पर यदि हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा और मंगल-राहू अच्छे न हों तो रक्तजनित रोगों की आशंका बढ़ जाती है। हस्तरेखा देखकर कैंसर की पूर्व चेतावनी दी जा सकती है और इस जानलेवा बीमारी के संकेत चिन्ह हथेली पर देखे जा सकते हैं। मस्तिष्क रेखा पर द्वीप समूह या पूरी मस्तिष्क रेखा पर बारीक-बारीक लाइनें हो तो ऐसे जातक को कैंसर की पूरी आशंका रहती है। ऐसी स्थिति में यदि मेडिकल टेस्ट करा लिया जाए और उसमें कोई लक्षण न मिलें, तब भी जातक की जीवनशैली में आवश्यक फेरबदल कर उसे भविष्य में कैंसर के आक्रमण से बचाया जा सकता है

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आपकी ह्रदय रेखा के प्रभाव— हमारी हथेली में हृदय रेखा का अपना विशिष्ट स्थान है, जिससे हृदय रेखा को देखा-जाना जा सकता है। यह रेखा अधिकांश विवाह रेखा यानि सबसे छोटी अँगुली के लगभग एक इंच नीचे से निकल कर किसी क्षेत्र पर जा सकती है व किन्हीं भी रेखाओं से इनका संबंध हो सकता है। इसकी समाप्ति स्थान मुख्यतः गुरु पर्वत यानि तर्जनी अंगुली के नीचे होता है, लेकिन कभी-कभी इसका अंत शनि पर्वत या सूर्य पर्वत पर ही हो जाता है। किसी-किसी के हाथ में ये रेखा होती ही नहीं और किसी- किसी की हथेली में इस रेखा का मिलन मस्तिष्क रेखा पर होता है। तो आइए जाने क्या कहती है हमारी हृदय रेखा- —- हृदय रेखा अपने उद्गम स्थान से निकल कर गुरु पर्वत तक जा पहुँचे तो ऐसा जातक धार्मिक, न्यायाधीश, प्रोफेसर, धर्म का ज्ञाता, पुजारी, राजनेता होकर सदैव प्रसन्न रहने वाला होगा। हाँ यह स्पष्ट व कहीं से भी कटी या जंजीरदार नहीं होना चाहिए। —- यदि हृदय रेखा का कहीं से कटा होना, फिर आगे बढ़ना उस जातक को हृदय से संबंधित विकार या अन्य कष्ट जैसे प्रेम में आघात लगना, झेलनेपड़ते हैं। —-हृदय रेखा यदि शनि पर्वत पर मुड़ जाए तो ऐसा जातक या तो बहुत निर्दयी होगा या बहुत ही दयावान-परोपकारी हो सकता है, क्योंकि शनि मोक्ष का भी कारक है। —-हृदय रेखा का मिलाप यदि मस्तक रेखा से हो जाए तो ऐसा व्यक्ति सिर्फ अपने मन की ही करता है, दूसरों की बातों पर ध्यान नहीं देता। —–हृदय रेखा का न होना उस जातक को कठोर बना देता है। उसके मन में दया का भाव ही नहीं होता। ——हृदय रेखा जंजीर के समान हो तो वह व्यक्ति कपटी होता है, मन की बात किसी को भी नहीं बताता। —– हृदय रेखा पर काला तिल होना उस जातक के लिए अनिष्ठकारी होता है। ऐसा जातक निश्चित ही कलंकित होता है। —– हृदय रेखा पर द्वीप का चिह्न होना ही उसे बार-बार धोखे दिलाता है। —- हृदय रेखा पर वृत्त का चिह्न हो तो उसका मन अत्याधित कमजोर होगा। —– हृदय रेखा के मध्य गुच्छा जैसे कोई चिह्न दिखाई दे तो वह जातक घमंडी होता है। —-गुरु पर्वत के नीच पहुँचकर कई शाखाएँ हो तो वह जातक शक्ति संपन्न व भाग्यशाली होगा। —-बहुत पतली हृदय रेखा या बहुत गहरी लाल रंग की हो तो वह जातक दुर्भाग्यशाली व कठोर होगा। —– सामान्य से अधिक चौड़ी रेखा हो तो वायु विकार से ग्रस्त रहता है व उच्च रक्तचाप भी होता है। —-शुक्र पर्वत से निकल कर कोई रेखा हृदय रेखा से जा मिले तो वह जातक अत्यधिक भोगी होगा। —–चंद्र पर्वत से निकल कर हृदय रेखा पर जा पहुँचे तो उस जातक को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ होता है।

बाहरी कड़ियाँ

साँचा:विज्ञान-आधार

सामुद्रिक शास्त्र का नामकरण समुद्र ऋषि द्वारा इस ग्रन्थ को प्रचारित करने के कारण किया गया है। ऐसा माना जाता है की समुद्र ऋषि का भविष्य कथन इतना सटीक निकलता था की उनके उपरान्त विद्वानों में समुद्र के वचन की साक्षी दी जाने लगी। अतः ज्योतिष आदि के ग्रंथों में श्लोकों के अंत में अपनी बात पर जोर देने हेतु ' समुद्रस्य वचनं यथा ' जैसे वाक्य प्राप्त होते हैं। दुर्भाग्यवश आज समुद्र ऋषि प्रणीत यह ग्रन्थ अपने अविकल रूप में प्राप्त नहीं है। वराह मिहिर आदि आचार्यों ने समुद्र के नाम का उल्लेख यत्र तत्र किया है। वर्तमान समय में 'सामुद्रिक तिलक' , भविष्य पुराण का स्त्री पुरुष लक्षण वर्णन , इत्यादि सामुद्रिक शास्त्र से सम्बंधित ग्रन्थ उपलब्ध हैं।